সময় ও মন
আমরা দুঃখী হলে, মন ভেঙে যায় ( সঙ্কুচিত হয়)৷ সময়টা তখন দীর্ঘ লাগে। যখন আমরা খুশি হই, মন প্রসন্ন (প্রসস্ত হয়) হয়, সময়টা তখন কিভাবে চলে যায়, বুঝতেই পারি না ৷ মনের সমতা বজায় থাকে, সময়ের উর্ধ্বে চলে গেলে ৷
মন যখন বিষণ্ন ও চেতনাহীন থাকে, তখন নিজেই নিজেকে অনুভব করতে পারে না। মন যখন খুব খুশি/উত্তেজিত তখন সময়কে ছোট মনে হয় ৷ আবার আমরা কোনোভাবে দুর্দশাগ্রস্থ হলে, সময়টাকে বড় মনে হয়। মনের এই দুই বিপরীত চরম অবস্থা থেকে মুক্তি পেতে- কেউ মদ্যপান করেন, কেউ ঘুমিয়ে কাটান ইত্যাদি ……
সমাধিস্থ হওয়া, ‘নমন’ অথবা সময়কে জয় করে তার উর্ধ্বে যাওয়া হল প্রকৃত মানসিক শাস্তি। এটিই মনের শ্রেষ্ঠ নিরাময়। কাল বা সময় আমাদের শ্রেষ্ঠ আরোগ্য দান করে।
মন যেমন সময়কে অনুভব করে, ঠিক তেমন এই বর্তমান ক্ষণটিরও একটি নিজস্ব মন আছে, সেই বৃহৎ মন যার অসাধারণ ও অপরিসীম নির্মাণ ক্ষমতা রয়েছে। মনে সাময়িক ক্ষুদ্র তরঙ্গ হল ভাব/ভাবনা। তাই কিছু সময় সমাধিস্ত হলেও আমাদের মন অনেকটা মানসিক শক্তি অর্জন করে।
তুমি যখন তন্দ্রাচ্ছন্ন হও অথবা ঘুম থেকে জাগার সময়টা — চেতনার সেই অসস্পষ্ট স্থিতিতে সময়হীনতাকে অনুভব করো।
🌷 জয় গুরু দেব 🌷
Weekly Knowledge
Banglore Ashram
10 Dec 1997
India
When the mind contracts, when it is unhappy, time appears to be too long. When the mind expands, when it is happy, time appears to be too short. When the mind is in equanimity, it transcends time.
When the mind is dull or unconscious, it is unable to experience itself. When the mind is excited or happy, time seems to be too short and when the mind is miserable, time seems to be too long. To escape from the two extremes, many resort to alcohol, sleep etc…..
Samadhi, no-mindedness or timelessness, is peace, the Real peace. That is the greatest healer. Time is the greatest healer.
Just like the mind experiences time, this moment has a mind of its own, a Big Mind which has enormous and infinite organizing power. Thought is nothing but a ripple in this moment, and thus a few moments of Samadhi gives the mind a lot of energy.
Before you fall into slumber or as soon as you wake up from sleep, in the moments of twilight of Consciousness, experience the timelessness!!
🌸Jai Guru Dev🌸
साप्ताहिक ज्ञानपत्र
१० दिसंबर, १९९७
आश्रम , बैंगलोर, भारत
काल और मन
जब तुम प्रसन्न होते हो , तब मैं विस्तृत होता है। तब लगता है समय कितना कम है।
जब तुम दुखी होते हो तब मन संकुचित होता है , तब समय लम्बा प्रतीत होता है।
जब मन मे संचितता है तो तुम काल के परे के जाते हो।
काल से बचने के लिए कई लोग शराब,निद्रा आदि का सहारा लेते है।
परंतु जब मन शिथिल या बेसुध रहता है तब यह आत्मा की अनुभूति करने में असमर्थ रहता है।
समाधि बुद्धि से परे समय से परे सच्ची शांति है।
समाधि के कुछ ही क्षण मन को अत्यधिक ऊर्जा प्रदान करते है। यह सबसे बड़ी चुकितस्क है।
एक विचार और कुछ नही समय के इस पल में एक तरंग है। इस क्षण का भी अपना एक मन है- एक विराट मैन जिसमे व्यवस्था करने की एक अपार योग्यता है।
निद्रावस्था के पहले ओर जिस पल तुम जागते हो, सचेतनता के उन घुमिक क्षणों में ,मन के परे इस समयहीनता को अनुभव करो।
🌸जय गुरुदेव🌸
সাপ্তাহিক জ্ঞান
বেঙ্গালুরু আশ্রম
১০ই ডিসেম্বর ১৯৯৭
ইন্ডিয়া