অহম একটি ক্ষুদ্র অণু

তোমার “আমি” বা অহম একটি ক্ষুদ্র অণু৷ এই অণু আমাদের পার্থিব শরীর, পদার্থের সাথে যুক্ত হলে তা পদার্থটির পরিচিতি পায়। একই অণু যখন স্বয়ং-এর সাথে, অনন্তের সাথে যুক্ত হয় তখন তা অনন্তের পরিচিতি লাভ করে ৷

এই অনু, অহম যখন বস্তুজগতের সাথে যুক্ত হয় তখন তা পার্থিব পরিচিতি লাভ করে। এটি আত্মার সাথে যুক্ত হলে তা ঐশ্বরিক হয়ে ওঠে। আমাদের সত্তা অথবা স্বয়ং-এর সাথে সংযুক্ত হলে তা শক্তি হয়ে যায়। নশ্বর শরীরের সাথে অহম যুক্ত হলে, দুর্দশাগ্রস্ত হয়ে পড়ে ৷

লক্ষ্য করবে, একটি বৃহৎ পারমাণবিক চুল্লীতে কেবল একটি ক্ষুদ্র অণু বিস্ফোরিত হয়।
একইভাবে, আমাদের সম্পূর্ণ অস্তিত্বে কেবল একটি অহম নামক অণু রয়েছে। এই অহম অণুর বিস্ফোরণ ঘটলে তা স্বয়ং-এর দীপ্তিতে পরিণত হয় ৷

সাধারণত আমরা বলে থাকি, “আমি দুর্দশাগ্রস্ত” অথবা “আমি সুখী” ৷

এই অণুকে পার্থিব শরীর ও ধারণামূলক পৃথিবীর পরিচিতি থেকে প্রকৃত বাস্তব জগতের পরিচিতিতে স্থানান্তরিত করো।

🌸 জয় গুরুদেব 🌸

Weekly Knowledge #1⃣6⃣4⃣
Montreal Ashram
30 Jul 1998
Canada

EGO IS ONLY AN ATOM

The “I” or ego in you is a tiny atom. If this atom is put with the body, the matter, it identifies with the matter. If this atom is put with the Being, the Infinite, it identifies with the Infinite.

When this atom, this ego, is associated with the material world, it becomes mundane. When it is associated with the spirit, it becomes Divine. It becomes shakti when associated with the Being, the Self. It becomes miserable when identified with the body.

You see, in a huge atomic reactor, it is just one tiny atom that is exploded. In the same way, in our whole body, there is just one little tiny atom of “I”. And when this “I” explodes, that is when it becomes the light of the Self.
Usually we say, “I am miserable, ” or “I am happy”.

Shift this atom from identifying with the body and the conceptual world, to identifying with the Real World.

🌸Jai Gurudev🌸

साप्ताहिक ज्ञानपत्र १६४
३० जुलाई, १९९८
मॉन्ट्रियाल आश्रम, कनाडा

अहं केवल एक अणु है

तुम्हारे अंदर का “मैं” या अहं एक छोटा सा अणु है। यह या तो जड़- तत्त्व से जुड़ सकता है या आत्मा से। जिससे भी यह जुड़ जाता है, उसी से इसकी पहचान होती है। जड़- तत्त्व से जुड़ने पर यह अपनी पहचान शरीर से करता है, आत्मा से सम्बंधित होने पर यह परम आत्मा से पहचान करता है।

जब यह अणु , यह अहं, भौतिक संसार से जुड़ता है, सांसारिक हो जाता है। आत्मा से जुड़ने पर यह दिव्य हो जाता है। स्वयं से, आत्मा से जुड़ जाने पर यह शक्ति बन जाता है, शरीर से जुड़ने पर दुखी हो जाता है।

देखो, एक विशाल अणु-संधान केंद्र में केवल एक छोटा सा अणु ही है जिसका विस्फोट किया जाता है। इसी प्रकार हमारे सम्पूर्ण शरीर में “मैं” का केवल एक छोटा सा अणु ही है। और जब इस “मैं” का विस्फोट होता है, तब आत्मा स्वयं प्रकाशमान होती है।
प्रायः हम कहते हैं, “मैं दुखी हूँ” या ” मैं प्रसन्न हूँ” ।

शरीर से, धारणात्मक संसार से हटाकर, इस अणु की पहचान असली संसार के साथ करो।

🌸जय गुरुदेव🌸


সাপ্তাহিক জ্ঞান # ১৬৪
মন্ট্রিল আশ্রম
৩০শে জুলাই ১৯৯৮
কানাডা

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