विषैला वामपंथ : एक विचार यात्रा.
सामान्यतः लोग यह विश्वास करते हैं कि भारतीय राजनीति में वामपंथ का पतन हो गया है. एक एक करके हर राज्य से कम्युनिस्ट पार्टियों की सरकारें खत्म हो गई हैं, संसद में उनकी उपस्थिति नगण्य है. फिर वामपंथ के विश्लेषण का औचित्य ही क्या है?
क्या वामपंथ सचमुच हार गया, समाप्त हो गया? या उसने रूप बदल लिया और पहले से अधिक विषाक्त रूपों में समाज को दूषित कर रहा है?
वामपंथ आखिर है क्या? वामपंथ का सबसे बड़ा आग्रह है समानता. और वामपंथी विचारकों ने समानता के नाम पर अमीरों और गरीबों के बीच वर्ग संघर्ष की भूमिका बनाई है. और पीढ़ियों तक लोगों ने इस समानता के यूटोपिया पर भरोसा किया है. पर वामपंथ का मूल क्या है?
वामपंथ का मूल समानता नहीं, संघर्ष है. समानता तो सिर्फ एक बहाना, एक विज्ञापन है. उनकी असली नीयत है समाज के विभिन्न वर्गों में संघर्ष. और उस संघर्ष के माध्यम से अव्यवस्था और अराजकता. इसी अराजकता के माध्यम से सत्ता पर कब्जा – यही है वामपंथ का मूल मंत्र.
वामपंथी विचारकों ने बहुत पहले इस बात को समझ लिया था कि आर्थिक आधार पर यह वर्ग संघर्ष ग्लोबल नहीं हो पायेगा. क्योंकि गरीबों की रुचि अमीरों से संघर्ष में नहीं है, बल्कि स्वयं अमीर बनने में है. तब करीब सौ साल पहले वामपंथी विचारकों ने अपनी रणनीति बदल दी. उन्होंने पहचाना कि समाज का व्यवहार राजनीतिक सत्ता से नहीं, बल्कि सामाजिक मूल्यों से प्रभावित होता है. तब वामपंथी आंदोलन ने समाज के स्थापित मूल्यों को बदलने की रणनीति अपनाई. उन जर्मन वामपंथियों ने इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल रिसर्च की स्थापना की जिसे आगे चलकर फ्रैंकफर्ट स्कूल के नाम से जाना गया. आज भी पूरी दुनिया में वामपंथियों की रणनीति उसी फ़्रंकफ़र्ट स्कूल से प्रभावित होती है. और आज वामपंथ सिर्फ चीन और रूस तक सीमित नहीं है. ये दुनिया के हर देश में हैं.
इन फ्रैंकफर्ट स्कूल वालों की रणनीति क्या है? उनका उद्देश्य है समाज में नित नए नए नए संघर्षों का निर्माण. सिर्फ आर्थिक आधार पर ही नहीं, जातीय आधार पर, भाषाई आधार पर, उत्तर और दक्षिण के आधार पर, अल्पसंख्यको के बहाने से...किसी भी तरह समाज में संघर्ष और अव्यवस्था पैदा करना. और यहाँ से भी आगे, यह संघर्ष परिवार तक आ पहुँचा है. नारीवाद के नाम पर स्त्री और पुरुष के बीच संघर्ष खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है.
इन संघर्षों को समाज के हर स्तर तक पहुंचाने की यह रणनीति सांस्कृतिक मार्क्सवाद कहलाती है. और समाज के मूल्यबोध पर कब्जा करने के लिए वामपंथियों के टूल हैं शिक्षा, कला, साहित्य, सिनेमा और मीडिया...सामाजिक संवाद के इन सभी साधनों पर वामपंथियों का कब्जा है.
वामपंथ वह शत्रु है जो छुपकर, रूप बदल कर, नए नए लुभावने चेहरों में हमपर हमला कर रहा है. उनसे निबटने के लिए यह आवश्यक है कि हम उनके हर रूप को पहचानें, और जाने अनजाने में पॉलिटिकल करेक्टनेस के नामपर हम जिन वामपंथी विचारों को प्रश्रय और प्रचार देते हैं उन्हें पहचान कर उनका उन्मूलन करें. क्योंकि जहाँ क्लासिकल मार्क्सवाद हमें सिर्फ तब प्रभावित करता है जब वह एक राजनीतिक क्रांति करने में सफल हो जाता है, सांस्कृतिक मार्क्सवाद हमारे व्यक्तित्व को उसी दिन से प्रभावित करने लगता है जिस दिन से हम उसके सांस्कृतिक मूल्यों को सब्सक्राइब करने लगते हैं.
ভারতীয় শিক্ষণ মন্ডল,দক্ষিণবঙ্গ প্রান্ত আয়োজিত বিশেষ কার্য্যক্রম
বিষয় : ” বিষাক্ত বাম”: বামদের পরিবর্তিত মুখ”
” विषैला वामपंथ” :वामपंथ के बदलते चेहरे
বক্তা : রাজীব মিশ্র অবসরপ্রাপ্ত মেজর। সেনা মেডিকেল কর্পস
Dr. Rajiv Mishra
Retired Major. Army Medical Corps
তারিখ: 22ই জুন 2020.
সময়: 8.00pm
আপনাদের সবাইকে এই অনলাইন অনুষ্ঠানে সাদর আমন্ত্রণ ভারতীয় শিক্ষণ মণ্ডল পরিবারের তরফে।
আয়োজক—
সুমন চক্রবর্তী,
প্রান্ত সংযোজক,
দক্ষিণবঙ্গ প্রান্ত,
ভারতীয় শিক্ষণ মণ্ডল।